लक्षण (छंद) :-
एक बस्तु निज गुण तजि के सम्पर्की के गुण ग्रहण करेला।
तदगुण नामक अलंकार तब कवि सब ओकर नाम धरेला॥
सार :- एक वस्तु जब अन्य बस्तु के गुण या रंग गहेला।
निज गुण रंग तजे तब तदगुण कवि सब लोग कहेला॥
उदाहरण (ताटंक) :-
रवि कर के सम्पर्क जहाँ शीशा के टुकड़ा पावेला।
रवि सम उहो चमिक के चहुँ दिशि निज प्रकाश फइलावेला॥
लोहा दहकत आगी में परि लाल रंग अपनावेला।
और आगि बनि अन्य वस्तु के ऊहो तुरत जरावेला॥
साधारण लोहा चुम्बक का संगति में जब ओवला।
कुछ दिन में आकर्षण के गुण ओहू में चलि आवेला॥
जे रंग के सम्पर्क निकट के उज्जर लूगा पावेला।
ओही रंग में रंगि जाला ऊ आपन रंग गँवावेला॥
जवन साँप तरु का पतई में सब दिन बास करेला।
हरिहर हरिहर पतई के रंग ओकर देहि धरेला॥
वीर :- उज्जर शीशा का गोली के फूलन कबे पहिरली माल।
भइल नीलमणि के माला ऊ गर में जात जात तत्काल॥
दोहा :- नारायण बसि सिन्धु में पवले नीला रंग।
हिमगिरि पर बसले भइल श्वेत शम्भु के अंग॥
सवैया :-
जाड़ में बेंग कहीं खर पात का ढ़ेर का भीतर जा के लुकाला।
किछुवे दिन में खर पात का रंग में बेंग के रूप स्वत: रंगि जाला।
खर पात का बीच में बैठल बेंग बिना चलले फिरले न चिन्हाला।
परिवर्तन रंग के ईहे अलंकार तदगुण नाम के एगो कहाला॥
जब उज्जर रंग प्रकाश के बल्ब का शीशा का संग में आके रहेला।
तब जैसन शीशा के रंग हो तैसन लाल या पीयर रूप गहेला।
बरफे में जे लोग निवास करे बरफे से ऊ उज्जर रंग लहेला।
संग में रहले बदले रंग जो तब तदगुण ऊ कवि लोग कहेला॥